शिशु के लिए परेशानी का सबब हैं गर्भवती मां की चिंताएं

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यदि आप हमेशा चिंता से घिरी रहेंगी तो इसका असर सीधा आपके गर्भ में पल रहे शिशु पर होगा। जी, हां! निश्चित रूप से आप यह जानना चाहेंगी कि आपके द्वारा की गई चिंता होने वाले शिशु को किस तरह से प्रभावित कर सकती है? आइये जानते हैं।
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    गर्भावस्‍था में चिंता का बच्‍चे पर असर

    मां बनना एक खास एहसास के साथ साथ एक जिम्मेदारी भी है। गर्भवती महिला को अपनी पूरी जीवनशैली बदलनी होती है। यही नहीं इन दिनों जितना संभव हो, उतना खुश रहना होता है। यदि ऐसा न किया जाए यानी यदि आप हमेशा चिंता से घिरी रहेंगी तो इसका असर सीधे सीधे आपके गर्भ में पल रहे शिशु पर होगा। जी, हां! निश्चित रूप से आप यह जानना चाहेंगी कि आपके द्वारा की गई चिंता होने वाले शिशु को किस किस तरह से प्रभावित कर सकती है? आइये जानते हैं।
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    खानपान में चूजी बनना

    यदि मां गर्भावस्था के दौरान काफी परेशान रहती हैं यानी चिंतित रहती हैं तो इसका असर बच्चे के खानपान पर दिखता है। दरअसल वह सब चीजें खाना पसंद नहीं करता। यहां तक कि वह हर खाने में मीनमेख निकालने वाला बन सकता है। यही नहीं यदि माता-पिता शिशु के जन्म के शुरुआती साल में काफी परेशान रहते हैं तो इसका असर बच्चे के स्वभाव पर पड़ता है। वह अन्य बच्चों से अलग थलग रहना पसंद करने लगता है या फिर दूसरों के साथ तालमेल बैठाने में सहज महसूस नहीं करता।
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    मां से दूर होते हैं

    यदि मां गर्भावस्था में काफी परेशान रहती हैं तो इससे शिशु अपनी मां के साथ भावनात्मक खिचाव नहीं महसूस करता है। यहां तक देखा गया है कि ऐसे शिशु बड़े होकर मां के साथ रहना पसंद नहीं करते। यही नहीं ये शिशु मां के इर्द-गिर्द होने से असहजता महसूस करते हैं। विशेषज्ञ इसे ‘इंसिक्योर अटैचमेंट’यानी असुरक्षित जुड़ाव कहते हैं। कहने का मतलब साफ है कि यदि आप गर्भवती हैं तो बेहतर है कि आप परेशान और चिंतित होने से बचें। खुश रहें और अपने शिशु को स्वस्थ बनाएं।
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    मां से दूर होते हैं



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    शारीरिक समस्या

    मां की चिंता शिशु को भावनात्मक रूप से ही नहीं शारीरिक रूप से भी प्रभावित करती है। जो मांएं गर्भावस्था में काफी चिंतित और अवसाद से घिरी रहती हैं, उनके शिशु शारीरिक परेशानियों से घिरे रहते हैं। विशेषज्ञ यहां तक दावा करते हैं कि ऐसे शिशुओं का विकास अन्य शिशुओं की तुलना में कम होता है। इतना ही नहीं जन्म के बाद से ही इन शिशुओं को गैस, पेट दर्द जैसी शारीरिक समस्या परेशान करती हैं। इनमें विकास की गति भी काफी धीमी होती है।
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    अंतर्मुखी होते हैं

    चिंता न सिर्फ गर्भवती महिला को लील रही होती है बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे के पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित कर रही होती है। असल में चिंतित मां के कारण शिशु अंतर्मुखी हो जाता है। वे दूसरों से ज्यादा बोलचाल पसंद नहीं करता। इतना ही नहीं वे लोगों से घुलना मिलना पसंद नहीं करते। भीड़भाड़ देखकर वे बेचैनी महसूस करते हैं। जितना संभव होता है समाज से कटे कटे रहना पसंद करते हैं। असल में गर्भावस्था में की गई चिंता बच्चे के पूरे व्यक्तित्व को ही हिलाकर रख देती है।
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    आत्मविश्वास में कमी

    अवसाद या चिंता के कारण गर्भवती महिला हर किस्म की समस्या से बावस्ता रहती है। मसलन उसे मानसिक समस्या तो है ही साथ ही उसे स्वयं गैस आदि की समस्या भी होने लगती है। इसके साथ साथ उनके शिशु में भी आत्मविश्वास की कमी होने लगती है। जैसे जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें देखकर पता चलता है कि दूसरों के सामने बेझिझक बात नहीं कर पा रहे। डरते हैं।
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